वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

 हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदउलहक़

 

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप अहल हक़ीक़त के उस्ताद और अर्बाब हक़ीक़त के क़िबला थे।हज़रत अबद अलक़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अनवार अलओन में आप के हालात के बारे में लिखा है कि हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि जब सात बरस के थे तो हमेशा अपनी वालिदा के हमराह नमाज़ तहज्जुद के लिए उठ जाते थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की वालिदा मुहतरमा ने कई मर्तबा आप से कहा कि अभी तुम पर नमाज़ फ़र्ज़ नहीं है लेकिन हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ को वालिदा की ये बात दिल को ना लगती थी कहते थे कि जो काम आप अपने लिए पसंद करती हो उसे मेरे लिए क्यों मुज़िर ख़्याल करती हो।उल-ग़र्ज़ जब आप की उम्र बारह साल हुई तो हक़ की तलाश में घर से निकल पड़े।

इन दिनों आप के बड़े भाई दिल्ली में एक दीनी मदरसे के सरबराह थे । हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि इस मदरसे में आ पहुंचे। आप के भाई ने आप को देनी किताबें पढ़ाना शुरू कीं लेकिन हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि को ज़ाहिरी इलम से कोई दिलचस्पी नहीं थी। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि मुदर्रिसा छोड़कर ब्याबान में निकल जाते और अल्लाह की इबादत मैन मशग़ूल रहते। एक अर्सा तक हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि उसी हालत में रहे फिर ग़ैबी इशारा पा कर हज़रत-ए-शैख़ जलाल उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि की ज़यारत के लिए पानीपत पहुंचे।

शेख़ जलाल उद्दीन पानी पत्ती रहमतुह अल्लाह अलैहि को हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के आने की ख़बर कशफ़ के ज़रीये मालूम हुई।आप ने अपने खादिमों को हुक्म दिया कि आज आला किस्म का खाना तैय्यार किया जाये और खाने में कुछ मकरो चीज़ें भी रख दी जाएं ।इस के इलावा हमारे दरवाज़े के सामने उम्दा घोड़े जिन पर ज़रीं ज़ीनाएं आरास्ता हूँ खड़े कर दीए जाएं ।आज हमारे पास एक मेहमान आरहा है जिस का इमतिहान लेना मक़सूद है।

हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के दरवाज़े पर पहुंचे तो बड़े उम्दा घोड़े देखे जिन पर सोने की ज़ीनें थीं। फिर अंदर दाख़िल हुए तो आगे दस्तरख़्वान बिछा हुआ था जिस पर तरह तरह के खाने रखे हुए थे जिन में कुछ मकरूह चीज़ें भी शामिल थीं। दिल में ख़्याल आया कि जो शख़्स इतनी शान-ओ-शौकत से रहता है और जिस के दस्तरख़्वान पर मकरूह चीज़ें मौजूद हैं वो दुनियादार है उसे मुहब्बत इलाही से कोई वास्ता नहीं है। चुनांचे हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़ौरन उस जगह से वापिस हुए और सारा दिन चलते रहे। शाम हुई तो लोगों से पूछा कि ये कौन सी जगह है। लोगों ने बताया कि हज़रत ये पानीपत शहर है। दिल में ख़्याल आया शायद में रास्ता भूल गया हूँ। रात शहर के बाहर गुज़ारी सारा दिन चलते रहे तो शाम को एक शहर में पहुंचे जब ग़ौर से देखा तो पता चला ये तो वही पानीपत शहर है। तीसरे दिन फिर शहर से निकले और एक जंगल में पहुंच कर रास्ता भूल गए।

हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि बड़े परेशान हुए और एक दरख़्त के साय में बैठ गए।इतने में हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने देखा कि चंद सवार चले आरहे हैं जल्दी से उठे और उन्हें हाथ हिला कर अपनी तरफ़ मुतवज्जा किया। इन में से एक घोड़सवार आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के नज़दीक आया और बोला मालूम होता है कि हज़रत रास्ता भूल चुके हैं। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने कहा हाँ। वो घोड़सवार घोड़े को उड़ लगाते हुए बोला जनाब रास्ता तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ख़ुद ही ग़म कर बैठे हैं और अब लोगों से पूछते फिरते हैं। ये कह कर सवार अपने साथीयों समेत चला गया।

इस घोड़सवार के ये अलफ़ाज़ आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के सीने में तीर की तरह लगे और फिर सोचा कि हाँ में वो रास्ता तो हज़रत-ए-शैख़ जलाल उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़ानक़ाह में गुम कराया हूँ। फ़ौरन पलटे और पानीपत में हज़रत-ए-शैख़ जलाल उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर होगए। उस वक़्त शेख़ जलाल उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि अपनी टोपी ख़्वाजा शमस उद्दीन तर्क रहमतुह अल्लाह अलैहि के मज़ार की गर्द में लपेट रहे थे। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि नेवही टोपी हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के सर पर रखी और हलवा इनायत फ़रमाया और आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को अपने हलक़ा इरादत में शामिल किया। एक तवील अर्से तक हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि इसी ख़ानक़ाह में रहे।

एक रोज़ शेख़ जलाल उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को सीने से लगाते हुए ख़िरक़ा ख़िलाफ़त अता किया और फ़रमाया कि तुझ जैसा इस ख़ानक़ाह में कोई नहीं तू ही मेरी ख़िलाफ़त का मुस्तहिक़ है।इस के बाद शेख़ जलाल उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को अबदुलहक़ का ख़िताब दिया।क्योंकि हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि हरवक़त हक़ हक़ के नारे बुलंद करते थे इस लिए सिलसिला चिश्तिया अहमदिया में लोग एक दूसरे को सलाम करने के बाद एक दूसरे को तीन बार हक़ हक़ कहतेहैं।जब किसी को ख़त लिखते हैं तो इस के सरनामे पर भी तीन दफ़ा हक़ हक़ लिख देते हैं। इस ख़ानदान में आज तक ये रस्म जारी है ताहम बाअज़ उलमाए किराम ने इस तरीक़े कार को ख़िलाफ़ संत क़रार दिया है। चुनांचे इस सिलसिला के अक्सर उलमा मशाइख़ ने इस आदत को छोड़ दिया है लेकिन अब भी इस सिलसिला के बाअज़ लोग ये आदत अपनाए हुए हैं।

सीरालाक़ताब में लिखा हुआ है कि जब हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के घर पहला बेटा पैदा हुआ तो इस का नाम अज़ीज़ रखा गया। पैदा होते वक़्त उस की ज़बान पर हक़ का लफ़्ज़ जारी था जो सब लोगों ने सुना जिस से सारे शहर में शोर मच गया। हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने पूछा ये कैसा शोर मचा हुआ है तो लोगों ने बताया कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के बेटे से जो करामत ज़हूर पज़ीर हुई है उस की वजह से ये शोर मचा हुआ है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया शोर नहीं होना चाहिए। ये कह कर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि घर से बाहर निकले और क़ब्रिस्तान पहुंच कर एक जगह पर निशान लगा कर फ़रमाने लगे कि हमारे बेटे अज़ीज़ की क़ब्र यहां पर होगी। चुनांचे दूसरे ही दिन आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का बेटा अज़ीज़ फ़ौत होगया।

हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाया करते थे कि अगर किसी ने ख़ुदा से लो लगानी है और बारगाह इलाही तक रसाई पैदा करनी है उसे चाहिए कि वो ख़ुद को फ़ना करले क्योंकि ख़ुद को फ़ना करने के बाद ही दिल में इशक़ इलाही पैदा होता है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि कहा करते थे जिस तरह नमक पानी में मिल कर हल होजाता है और उस की अपनी अलैहदा शनाख़्त ख़त्म होजाती है इसी तरह इंसान भी अगर दरगाह ख़ुदावंदी का तलबगार है तो अपनी हस्ती को ज़ात इलाही में फ़ना करदे।

हज़रत-ए-शैख़ अहमद अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि १५जमादी एलिसानी ८३७हिज्री को इस दार फ़ानी से रुख़स्त हुए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की आख़िरी आरामगाह रो दिल्ली इंडिया में है।